शांतिदूतों से ध्यान हटाने को सिखों को किया आगे। लाल किला, मलौट, नांदेड़ और भविष्य में इसके दुष्परिणाम।
भारत में फैलती नई और गंभीर बीमारी - लाल किला-नई दिल्ली, मलौट-अबोहर-पंजाब, नादेड़-महाराष्ट्र। समय रहते सजग हो जाओ वर्ना भविष्य में इसके दुष्परिणाम गंभीर होंगे।
विचार-विमर्श - TheHinduDhara
शांतिदूतों से ध्यान हटाने के लिए अब सिखों को किया जा रहा आगे?
लाल किला-नई दिल्ली, मलौट-अबोहर-पंजाब, नांदेड़-महाराष्ट्र-
होली गुजर गई...? किसी की अच्छी गुजरी तो किसी की बुरी गुजरी...! खैर जिसकी जैसी गुजरी या किसकी कैसी गुजारी आओं इस पर बात करें।
सिक्ख सम्प्रदाय का उदय:-
भारत इस्लामी हुकूमत के अधीन हैं, चहुँ ओर लूटपाट-हत्या, बलात्कार-जबरन धर्म परिवर्तन की चीत्कार। समय १५वीं शताब्दी, सनातन से हिन्दू और अब ऐसा लग रहा था की हिन्दू को फिर से बांटने का भी समय आ गया हैं।
इस्लामी आतंकवाद से आहात होकर हिन्दू धर्म और भारतीय संत परंपरा से निकला एक संत गुरु नानक देव (खत्री हिन्दू) जिन्होंने सिख पंथ की स्थापना की और फिर दसवे गुरु गोविन्द्सिहं जी ने सिख पंथ को खालसा दिया।
हिन्दुओं का सबसे मजबूत और योध्धा पंथ (सम्प्रदाय) था सिख पंथ और सनातन की रक्षा हेतु इस्लामी आतताइयों के विरुद्ध बनी एक सेना की तरह था। भगवी पगड़ी जिसकी प्रतिक थी ।
लेकिन आज वो ही पंथ धर्म बनकर अपनी ही जड़ के खिलाफ खड़ा हैं।
और इसका बिज बोया ब्रिटिशो ने और फिर अंग्रेजों के पद चिह्नों पर चल रही कोंग्रेस ने जहाँ एक तरफ हिन्दुओं को धर्मनिरपेक्षता का लोलीपोप दिया और सिख पंथ को धर्म करार दिया।
जातियों को ख़त्म करना चाहिए था लेकिन वोटों की राजनीती करने के लिए धर्मनिरपेक्षता के धोखे में रकः कर जातीय व्यवस्था को बरक़रार रखा।
और आज सिख अपने गुरुओं का उपदेश भूल कर हिंसा और निर्दोषों की हत्या पर उतारू हैं।
कभी शांति का पाठ पढ़ने वाला सिख आज चरमपंथी हो चूका हैं...?
लाल किला, नई दिल्ली:-
भारत की अस्मिता की रक्षा करने वाला स्वयं ही आज भारत की अस्मिता का चीरहरण कर रहा हैं।
जब देश 72वें गणतंत्र का उत्सव मना रहा था, उसी वक्त दिल्ली में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की शोभा को ठेस पहुंचाने की पटकथा लिखी जा रही थी। शांति वादे के बावजूद भी राजधानी तक जाना और लाला किले पर धार्मिक ध्वज फहराना, पटकथा चाहे जिसने भी लिखी हो मगर क्या खूब लिखी थी।
अपना मकसद साधनें के लिए सिखों को आगे किया और आरोपी भी बना दिया और सिखों के प्रति देश की जनता में आक्रोश भी भर दिया।
मलौट-अबोहर-पंजाब:-
जनता के बहुमत से लगातार जीतने वाले जनप्रतिनिधि (अबोहर से BJP विधायकअरुण नारंग) को गुंडे (आतंकवादी, खालिस्तानी, जिहादी) रोड पर घेरकर उसे निवस्त्र कर दिया जाता हैं और मार-पीट की जाती हैं, पुलिस किसी तरह इन आतताइयों से अरुण नारंग की जान बचा पति हैं।
अरुण नारंग जिन्होंने 3000 से अधिक वोटों के अंतर से वहां के दिग्गज नेता सुनील जाखड को हराया और सुनील जाखड जो तीन बार से लगातार वहां के विधयक रह चुके हैं।
किया धरा तथाकथित किसानो का लेकिन बदनामी सिखों की - वहा जी वहा।
अब महाराष्ट्र का नांदेड़े:-
हालाँकि महाराष्ट्र में सियासी संकट भी हैं, लेकिन वहां कोरोना भी बेकाबू हैं इसलिए वहां के प्रशासन ने नांदेड़ के गुरुद्वारा - हुजुरसाहेब में प्रतिवर्ष की भांति निकलने वाले होल्ला-मोहल्ला जुलुस पर रोक रोक लगाई और गुरुद्वारा प्रबंधक समिति भी इस बात को मान जाती हैं और पुलिस भी आश्वश्त हो जाती हैं और जब गुरुद्वारा समिति मान गयी तो पुलिस ने गेट के बाहर बैरिकेट लगा दिया और कुछ पुलिस के जवान वहां सुरक्षा में खड़े थे।
बाहर पुलिस के जवान और गुरुद्वारे में धीरे धीरे हजारों की भीड़ जमा हो जाती हैं अब मौका था बैरिकेट तोड़ने की और वही हुआ ।
हजारों की भीड़ निशान साहिब लेकर बैरिकेट तोड़ कर पुलिस के जवानों पर पर हमला करते हैं इसमे 10 से अधिक पुलिस जवान घायल हो जाते हैं और ये उन्मादी भीड़ इतने बेख़ौफ़ थी की इन्होने SP और DSP की गाड़ी पर भी हमला कर दिया। अब वहां के DIG निसार तम्बोली ने बताया हैं की जो निर्देश हमने दिया था और जवाब में गुरुद्वारा प्रबंधक समिति ने भी कहा की हम सभी निर्देशों का पालन करेंगे, लेकिन सब वायदे धरे रह गए और फिर से देश की सुई इस्लामी आतंकियों और जिहादियों से हटकर सिक्खों पर आ कर थम गई।
इसके पीछे जो भी कारण आपको लगता हैं, कमेंट करके बताइयेगा
👍🙏